
मितिः २०७८ भाद्र २५ गते
भगवान यादव
अवधी समाज प्राचिन सनातन समाज होय । वैदिक कालसे अवधी समाज कै आपन ऐतिहासिक सांस्कृतिक महत्व कै बर्णन बेद पुराणन मे मिलत है । हिन्दु समाज कै धार्मिक औ बैदिक भाषा संस्कृत के परिस्कृत देहाती भाषाके रुपमे भारोपेली भाषा परिवार अन्तरगत अवधी भाषा कै विकास भवा माना जात है । जहाँ परोसी देश भारत मे संबिधानतः अवधी का हिन्दी भाषा के एक भाषिका के रुपमे मान्यता है वहीँ नेपाल सरकार अवधी भाषा कैँहा संबैधानिक रुप मे राष्ट्रिय भाषा कै मान्यता दिहे है । नेपाल के लुम्बिीनी प्रदेश कै सब तराई मधेश जिल्ला नवलपरासी, रुपन्देही, कपिलबस्तु, दाँग, बाँके तथा बर्दिया मे अवधी भाषा पहिला दुशरा या तिसरा मुख्य भाषा के रुप मे अस्तित्व मे है । वइसय भारत के उत्तर प्रदेश राज्य, मरिसस, लगायत के देश मे करीब ५ करोड के हाराहारी मे अवधी भाषी रहे तथ्याँक है । नेपाल मैंहा भवा २०६८ साल के जनगणना मुताबिक अवधी भाषी कै संख्या साढे पाँच लाख है । तथ्थाँक मैंहा अवधी भाषा कैँहा यय मुलुक कै एघारवा स्थान पैंहा देखावगा है । नेपाल कै भाषा आयोग लुम्बिनी प्रदेश मैंहा अवधी भाषा कैँहा सरकारी कामकाज कै भाषा बनावैक सिफारिस किहिस है । र्जौन निसन्देह अवधी भाषी खातिर हर्ष कै बात होय । अवध औ अवधी कै बात करत मैंहा राम जन्मभुमि अयोध्या, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, रामायण, रामचरित मानस औ वह कै रचयिता गोस्वामी तुलसिदास कैँहा नाय भुलाय सका जात है । वइसय द्वापर युगिन अवध सम्राट भगवान श्रीकृष्ण, महाभारत, गिता औ यह कै रचयिता बेद ब्यास अवधी संस्कृति औ सभ्यता कै मेरुदण्ड कहिसका जात है । यहकरे साथ साथवै शान्ति कै अग्रदुत भगवान गौतम बुद्ध कै अवधी संस्कृति औ समाज परिहां बहुत बडा छाप परा आभाष कै सका जात है । यिहय सब कारण है कि अनादीकाल से आजतक अवधी समाज औ यह के संस्कृतिका गौरबपूर्ण मानाजात है ।
बिगत से बर्तमान तक अवधी साहित्य के क्षेत्र मैंहा कइव विद्धान लेखक दार्शनिक अवधी साहित्य भण्डार कैँहा उर्बर बनाइन है । प्राचिन धार्मिक ग्रन्थन से लैकय मध्यकाल औ आधुनिककाल तक मे धर्मगुरु, सुफि सन्त महाराज के योगदान से अवधी कै बगिया फलफूल से भरा है । कुकरिप्पा, मलिक मोहम्मद जायसी, सुरदास, रहिमदास, कबिरदास, दुलनदास घाघ भडड्रीसे लैकय रमईकाका तक अवधी बगियाका मलजल दैकय हराभरा किहिन है ।
अवधी समाज मे सबसे बडा प्रभाव रामायण कै मनाजात है । आजीव हर अवधबासी मर्यादा पूरुषोत्तम भगवान श्रीराम कै आदर्श पालन करत है । उन्है आपन आदर्श मानत हैँ । अवधी समाज मे हर आदमी कै घर राजा दशरथ कै घर, हर पुत्र श्रीराम लक्ष्मण, हर बेटी सीता, हर सम्धी दशरथ औ जनक हर गाँव अयोध्या जनकपुर रहा परम्परागत सांस्कृतिक मान्यता है जवन गीत संगित के माध्ययम से झलकत है । समाज मे दशहरा के समय मे हर साल रामलिला कै मञ्चन होव निसन्देह अवधी साँस्कृतिक सम्पदा मे भगवान राम कै प्रभाव दर्शावात है । तुलसीकृत रामायण कै दोहा चौपाई अबहिनव गाँव जेवार मे सुबह से लैकय साम तक बिभिन्न प्रसंगबश प्रयोग किहाजात है । समाज मैंहा अवहिनव बच्चेन के जन्म से लैकय विवाह अवसर परिहां भगवान श्रीराम औ उनके माता पिता औ राजा जनक माता सीता के नाव से लोकगीत गावैक परम्परा है । यतनय केवल नाय श्रीराम राज्य मैंहा रहा ब्यवस्था मुताविक राजा अपना भूखा रहिकै भि जनता का खवावै, जनता कै चिन्ता करै, जनता के सिकायत का दूर करै, सगरिव जनता कैँहा काम कै जिम्मेवारी दियं, समाज के कला संस्कृति कै संरक्षण करै, यि सब बात श्रीरामचरित मानस से सीख सका जात है । यही कारण है कि अवधी सामाजिक जीवन कै महत्वपूर्ण हिस्सा श्रीरामचरित मानसका मानिसका जात है । रामायण आधुनिक नेपाल भारत के सम्बन्धका समेत बैदिक पौराणिक धार्मिक परम्परा से बाँधि कै रख्खे है । माता जानकी कै नैहर जनकपुर औ भगवान श्रीराम कै घर अयोध्या बीच रहा प्राचिन बैबाहिक सम्बन्ध कोहि के चाहेसे नाय टुट सकत है ।
वइसय भगवान श्रीकृष्ण कै प्रभाव अवधी समाज परिहां वतनै है जेतना रामायण मे श्रीराम कै । गीता ज्ञान, महाभारत भगवान श्रीकृष्णद्धारा प्रदान किहागा मानव समाजका अमुल्य उपहार अवधी समाज कै साँस्कृतिक खजाना होय । अवधी समाज मे अबहीव श्रीकृष्णलिला कै परम्परा जीवित है । गाँव गिराँव मे समेत भागवत गीता कै पूजा अवधी समाज कै अभिन्न कर्म माना जात है । प्रेमभाव सिखावयवाला भगवान श्रीकृष्ण कै चरित्र, जिवन औ जगत कै महत्व बतावैवाला गीता ज्ञान मानव मुक्ति कै मार्ग बना है । राजकाज से भिन्न, नेहाइतय देहाती गाँव किसान हरवाह चरवाह के जीवन कै प्रतिक भगवान श्रीकृष्ण अवधी जनजन के मनमे बसे मिलत हैँ । यतनय नाय महाभारतकालिन नेपाल कै कैइव जगह स्थान आधुनिक समाज से जुडा है, चाहे उ काठमान्डौ कै पशुपतिनाथ कै होय या बिराट राज्य कै बिराटनगर । सामाजिक मान्यता यहव है की दाँग कै पाडवेश्वर मन्दिर औ रिहारधाम मे भगवान श्रीकृष्ण यात्रा किहिन । रिहार मे मामी सँवरीका दर्शन दिहिन औ उनके माँग अनुसार चारवधाम कै जल डालि कै तप्तकुण्ड बनाइन । समाज के तमामन धार्मिक अनुष्ठान मे भगवान श्रीकृष्ण का याद किहा जात है, अधिकांश अवधी गीत संगित उनही औ राधा के लिला परिहां न्यौछावर है । अवधी लोकगीत कटिया बैठौरी गयवारी चरवाही से लैकय कजरी सवनी औ झुलागित मैंहा भगवान श्रीकृष्ण कै बर्णन मिलत है । भगवान श्रीरामसे अवधी समाज जहाँ मर्यादा सिखिस वही भगाव श्रीकृष्ण से जीवन कै कटु यर्थाथता । अवधी समाज मे श्रीराम मन्दिर बहुत कम मिलि लेकिन श्रीकृष्ण मन्दिर हर गाँव मैंहा है । श्रीराम मन मे बसत है औ श्रीकृष्ण जीवन मैँहा । यह से सहज आकलन कही सका जात है कि अवधी संस्कृति मैंहा महाभारत औ गीता कै केतना महत्व है ।
भगवान श्रीराम औ भगवान श्रीकृष्ण के साथसाथेन भगवान गौतम बुद्ध भी अवधी समाजका गौरबान्वित बनाइन् है । तुलनात्मक रुप मे अवधी भाषि कैँहा अहिँसा प्रिय, शान्त रहिकै सादा जीवन उच्च बिचार कै हिमायति बनावै मैंहा बुद्ध कै प्रभाव मानि सका जात है । नेपाल के अवधी भाषी बहुल क्षेत्र कपिलवस्तु तात्कालिन शाक्य राज्य कै राजधानी तौलिहवा, तिलौराकोट होब भी एक कारण होइ सकत है । यही हिसाब से अवधी भाषा संस्कृतिका प्राचिन काल से सम्बृद्ध होय मैंहा धार्मिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमी मिला लेकिन आज के दिन मैंहा हम लोग कै जिम्मेवारी होय कि यय तथ्ययन का आत्मसाथ करतै अवधी भाषा औ संस्कृति के क्षेत्र मे हम लोगका मिला जिम्मेदारीका सफलतापूर्वक निर्वाह किहा जाय । धन्यबाद