फागुन १६ गते, आईतबार
यहय चईत १६ गते हम आर्यन लोगन कय महान परव होली आवय वाला हय । होली कय बात होय अऊर हमरे बाबा स्व. मोहनलाल वैश्य अउर हमरे बप्पा स्व. रामगोपाल वैश्य कय जिकिर नहोय अईस तो होइन नाय सकत हय ।
ई नेपालगंज नगरीया मईहाँ होली खेलय कय इतिहास बहुतय पुरान हय । ई नगर कय त्रिभुवन चऊक मईहाँ खेलय वाला होली तो देशै भरए मईहाँ प्रसिद्ध हय । पचासन साल पहिलय त्रिभुवन चऊक कय पच्छु तर्फ घी पिघलावै वाला बहुतय वडा लोहे कय कढाव रक्खा रहय । होली मईहाँ यही कढाव मईहाँ खुब गाढा लाल रंग घोरा जात रहय । ई रंगीन पानी मईहाँ होली खेलय वालेन कईहाँ बोर दिहा जात रहय । हियाँ धमार गावय वाले लोग जुटत रहेंय ।
होली कय गीतन से बसन्त कय ऋतु मईहाँ निखार आए जावा करत रहय । जईसन होली नकचियाय २ महिना पहिलेन से होली कय हुडदंगी लोग ठऊर ठऊर से लकडी चोराय के लावंय अऊर ऊ लकडी का होलिका जलावय वाले ठऊर मईहाँ जमा करतय जात रहय । पुरान खटिया, चऊकी, गुमटी जउन मिलय चोरय कय लई आंवय अऊर होलिका कय ठऊर मईहाँ डाल देत रहय । अईसनय कुछ लोग होली का बढिया ढंग से मनावय कय खातिर ठाँव–ठाँव से चन्दा उठावेक जुट जात रहय । कोई चन्दा नाय दिहिस तो ऊके ठऊर नाही ! रातय के ऊ के घर कय चौतरामा गु से भरा हडिया फोर दिहा जात रहय । नेपालगंज फेरे पहिले कय वार्ड नं. १० अबही कय वार्ड नं. ८ मईहाँ धार्मिक विधि विधान से होली जलत आवा हय । अऊर ठऊँ मईहाँ वईसनय लकडी मईहाँ आगी लगाए दिहा जात हय ।
मूला रानी तलऊवा कय ठऊर मईहाँ जलय वाला होली पुरय विधि विधान से दशकन से जलत आवा हय । पहिले होली आज कय महेन्द्र स्कूल (नाईट स्कूल) के नेरे जलत रहय । ई होली जलावेक स्थान समय समय मईहाँ बदलतय गवा दशकन से आजिकय रानी तलऊवा कय पुरवय तरफ कय खाली स्थान मईहाँ जलतय आवा हय । नगर भरी कय बडे–बडे धनी, गरीब, वर्ग कय लोग हिईर्यँए होली तापय आवत हय । जब रानी तलाऊ कईहाँ नवा ढंग से नगरपालिका बनावय लाग, ऊ समय मईहाँ अईस लाग कि हियाँ अब कबहुँ होली नाय जल पाई ।
फिर का होली कय महान हुडदंगी हस्ती मोहनलाल अऊर राम गोपाल मिली कय नगरपालिका से लिखवाईन कि रानी तलाव बोटि· पार्क बन जाई फिर भी होली हिँयए जली । नगरपालिका ई परम्परा रोकय कय प्रयास कबहु न करि । नगरपालिका ऊ लोगन कय आगे झुकि गवा अऊर लिखि कय समझऊता किहिस कि आदि अनादि काल तक होली हिँयए जलतय रही, ई काम कबहुँ नरोका जाई । ई समय मईहाँ होलिका कय ठउवा मईहाँ एक बडा लोहे कयर पल्ला लगववा गवा । ऊ मईहाँ एक ताला लगववा गवा ई के एक चाभी नगरपालिका कय पास अऊर दुसर चाभी राम गोपाल जी कईहाँ दिया गवा । ई समझऊता कय १ कपी आज भी राम गोपाल वैश्य कय घर कय फाईल मईहाँ रक्खा हय । रामगोपाल वैश्य कय होली परब से विशेष लगाव रहय ।
मोहनलाल वैश्य बहुतय धार्मिक मनई रहय ऊ चाहे होली होय, कन्धईया अष्टमी होय, बागेश्वरी मन्दिर मईहाँ होवय वाला यज्ञ होय या हडिया बाबा आश्रम मईहाँ होवय वाला मेला होय ईका परम्परा से करावय कय खातिर लगन से जुट जात रहय । ई कार्यक्रम कय खातिर चन्दा उठावय कय खातिर दिन रात लगे रहत रहय । ई मारे बहुतय मनई उनका देखि कय दुरय से भागय लागे रहंय । अईस नाही कि ऊ चन्दा दोसरये से सिरिफ मांगत रहय । धार्मिक कार्यक्रम कय खातिर अपने पासव से ऊ तमाम रुपियाँ लगाय देत रहय । तमाम चन्दा उठावेक कारन । होली कय चन्दा उठावय मईहाँ तमाम परेशानी उनका आवत रहय ।
रिस्ता मईहाँ मोहनलाल जी राम गोपाल जी कय मामा रहय । जईसन होली आवय ऊ आपन भान्जा राम गोपाल कय डेउढी मईहाँ पहुँच जाय अऊर कहंय राम गोपाल जी होली नकचेरेन आई गवा हय, टाईमवा बहुतय कम हय, लकडी मंगवावेयक हय, होली कय मिलन बागेश्वरी मन्दिर मईहाँ करावेक हय, हुवाँ ठण्डई कय व्यवस्था करेक हय, ई मारे जत्ति जल्दी होय सकत हय, व्यवस्था करयक जुट जाव । हमका कोई चन्दय नाय देत हय तुम लगिहव तब चन्दा ठीक ढंग से उठि जाई ई काम तुमही सिरिफ कर सकत हव । फिर का मामा कय बात मानिकय ऊ लग जात रहय, होली कय पुरा तैयारी करय खात्तिर ई काम उनीकय लिए नवाँ नाय रहय ।
होली कय कार्यक्रम ऊ जमानय से करत आवत रहय । करिबय करीब ४० बरस पहिले ऊ नेपालगंज मईहाँ महामुर्ख सम्मेलन कय आयोजन करिकय हिँया गदहा दऊड करावत रहय । ई गदहा दऊड कय खातिर कसगर लोगन से गदहा मंगवावय । ई गदहा दऊड मईहाँ नगर कय नामी गिरामी हस्ती लोग सामिल होत रहय । कऊनव समय पंचायत काल समय कय पूर्व संचार मंत्री फत्तेह सिंह थारु अईस गदहा दऊड मईहाँ सहभागी भए रहय । ऊ अपने गटई मईहाँ तरकारी, जुता, चप्पल कय माला पहिन कय अऊर रंगीन ऊंच टोपी पहिन कय नगर भरि चलिकय होली मनाईन रहय । ऊ समय मईहाँ राम गोपाल जी बहुतय गरीब रहए । कसगर लोग गदहा लावए तो उन लोगन का पारिश्रमिक देयक परत रहय । पारिश्रमिक देत मईहाँ रुपिया कमी परि जाए तो ऊ अपने घरि कय टुटफुट अल्मुनियम कय वर्तनए उन लोगन कईहाँ दई दिहा करत रहय ।
उन कय सिरिफ एक्कय मकसद रहय, थोर समस्या परि जाय मुला परम्परा नटुटय । जब होलीका जलावेक होय तो उन्ही पुजा करिकय अपने हात से होलीका मईहाँ आगी लगावत रहय । वाद मईहाँ ई पुजा प्रतिष्ठा बाभन से करावय लागे मुला आगी ऊ खुदय लगावत रहय । एक बेरिया हिँया कय एक महाजन महावीर चौधरी ‘गुप्ता’ जी राम गोपाल जी से कहय लागे ई जब से तुम होली जलावय लागे हब तुम्रे आर्थिक स्थिति बहुतय ठिक भवा हय । अब कि बार तुम होली नजलाऔ ई काम हमका करय देव । उन कय बात बप्पा राम गोपाल जी मान लिहिन अऊर ऊनका होली जलावेक दई दिहिन । ऊ बरस महाजन महादेव चौधरी का कुछ नोक्सान हुई गवा, बाद मईहाँ ऊ होली जलावयेक नाय आए । ई मेर अबही वि.सं. २०७३ कय होली तक उन्ही होली जलावेक परम्परा निभाईन् । महामूर्ख सम्मेलन उनकय बहुतय मन पसन्द कय कार्यक्रम रहय ।
जईसय होली नकचियाय ऊ सरकार, नेता, उद्योगपति, व्यापारी, पत्रकार, साहित्यकार, सरकारी कर्मचारी केरेन के ऊप्पर व्य·य कय भाषण लिखय जुट जात रहें । ई व्य·य कय भाषण लिखवाय कय खात्तिर नगर कय तमाम बुद्धिजीवी जुटजात रहंय । यही समय मईहाँ नगर कय बुद्धिजीवी वर्गन कय ऊप्पर व्य· करतय हुवय टाइटल लिखा जात रहय तमाम मान पदवी अलड्ढार से उन लोग का विभूषित किहा जात रहय । कुछ लोग आपन ईन टाइटल पढि कय बिगरि जात रहय, कुछ लोग खुश होत रहय, जो बिगरि जाय उन सब से कहा जात रहय बुरा न मानव होली हय । ई कहिके सबकय गुस्सा उतारि दिहाँ जात रहय । ई टाइटल से पंचायत काल से बडा हाकिम अंचलाधीश तक नाय बच पावत रहय ।
महामूर्ख सम्मेलन कय जुलुस जईसय निकलय मोहनलाल जी कहंय पहिले अंचलाधीश कार्यालय जाए कय होली साहेब से खेला जाई फिर नगर मईहाँ धमाचौकडी मचाए कय होली खेला जाई । उन कय ई बात पर बहुतय लोग गुस्साए भी जात रहय, पर मन मसोसि कय सभय अंचलाधीश कार्यालय मईहाँ पहुँच कय खुब रंग खेलय अऊर जोर जोर से होलियावए । ऊ समय मईहाँ फत्तेह सिंह थारु महामूर्ख सम्मेलन कय सभापति बनाए गएं । बाद मईहाँ ऊ सञ्चार मंत्री तक बनि गएं । ई समय मईहाँ लोगन मईहाँ एक भ्रान्ति पइदा होई गवा कि जो ई महामूर्ख सम्मेलन कय सभापति वनि कय तरकारी, जुता, चप्पल कय माला पहिनि कय गुब्वारा लाग ऊंच टोपी पहिन लेई ऊ के पद मईहाँ बढोत्री हुई जात हय । ई सोंच कय नगर कय तमाम बुद्धिजीवी लोग मांग करए लागे कि ई बरस हम का ई महामूर्ख सम्मेलन कय सभापति बनाओ । ई मेर फरक फरक समय मईहाँ बहुतय मनई महामूर्ख सम्मेलन केर सभापति बन कय जुता, चप्पल कय माला पहिनिकय ऊंच टोपी पहिन कय नगर परिक्रमा किहिन । महामूर्ख सम्मेलन कय राम गोपाल जी आजीवन संरक्षक बने रहें । आज होली कय महान हुडदंगी राम गोपाल अऊर मोहनलाल जी ई दुनियाँ मईहाँ नाय हय मुला उनी कय याद सबकय मन मईहाँ हय । होली आवय वाला हय, ई होली मनावा जरुर जईहय, मुला उन लोगन कय याद जरुर सबका आई कि आखिर कोई रहय जो जी जान लगाय कय होली का भब्य बनाए देत रहय । होली होई मुला ऊ मेर न होई पईहय जईसे पहिले होत रहय ।
रानी तलऊवा ठऊरे होली जलावय कय जिम्मा विजय लाल वैश्य जईस युवा लोग अब लई लिहिन हय । बित गवा बरस मईहाँ उन्ही कय अगुवाईन मईहाँ होली जलावा गवा रहय ई बरस फिर उन्ही कय अगुवाई मईहाँ होली जली । अईसनय प्रेस स्वतन्त्रता सेनानी स्व. श्री राम गोपाल वैश्य स्मृति प्रतिष्ठान नेपालगंज स्व. स्वराम गोपाल वैश्य कय होली मइहाँ याद राखय कय खातिर अबकी बार चैत्र १३ गते दिन त्रिभुवन चऊक पूर्व लाईन मईहाँ होली मिलन अऊर रंगारंग कार्यक्रम आयोजन करय कय खातिर योजना बनाईस हय । ई प्रतिष्ठान कय अध्यक्ष हंय नन्दलाल वैश्य । ई काम करय कय जिम्मा नेपालगंज कय पुरान पत्रकार पूर्णलाल चूके कईहाँ दिहा गवा हय ।
अब देखयक बाँकी हय ई कार्यक्रम कत्ता भब्य अऊर कत्ता सभ्य से होइहय । तैयारी अबही से शुरु हुई गवा हय । ई होली बहुतय पुरान परव होय । ई परव कईहाँ त्रेता युग मईहाँ भगवान राम भी मनावत रहय । द्वापर युग मईहाँ भगवान श्रीकृष्ण भी गोपियन कय साथ मनावत रहंय । राधा जी कय साथ मईहाँ ऊ होली खेलत रहय । बृज कय होरी दुनियाँ मईहाँ मसहुर हय । मुगलकाल मईहाँ सम्राट अकबर भी खुबय होली खेलत रहंय । होली परव कय बारेम एक किस्सा मशहुर हय ऊ होए कि राजा हिरण्य कश्यप बहुतय अधर्मी रहय । ऊ अपने का भगवान बतावै लागें, उन कय लरिका रहय भक्त प्रहलाद नांनमूनय से ऊ भगवान बिष्णु कय पुजा उपासना करय लाग ।
ई मारे हिरण्य कश्यप उन से गुस्साएंगे बहुतय अपने लरिका भक्त प्रहलाद कईहाँ सम्झाईन कि भगवान बिष्णु कय पुजा नकरओ फिर भी ऊ नाय माना ई कय बाद ऊ अपने लरिका भक्त प्रहलाद का मरवाऐ कय खातिर ऊ का पहाड से फेंकवाईन हाथी कय पाँव से रौदवाईस फिर भी भगवान बिष्णु कय कृपा से ऊ बचा रही गवा । हिरण्य कश्यप कय एक बहिनी रहीं ऊ कय नाम रहय होलिका, ऊ बहुतय सुन्दर रही, ऊ का एक वरदान मिला रहय कि ऊ का आगी नजलाय पाई ई मारे हिरण्य कश्यप ऊ का आज्ञा दिहिस कि आपन भतिज प्रहलाद कईहाँ गोदी मईहाँ लईकय आगी मईहाँ घुस जाओ । होलिका अईसेन किहिस ऊ भक्त प्रहलाद का अपने गोदी मईहाँ लईकय आगी मईहाँ घुसी अऊर ऊ जलिकय मरि गई । होलिका कय बिहा भारत राजस्थान मईहाँ रहय वाले मनई ईलोजी से होत रहय । जऊन दिन होलिका प्रहलाद कईहाँ आगी मईहाँ लईके घुसी रहय वही दिनियाँ ईलोजी उह से बिहा करय कय खातिर बरात लईकय आवत रहय । रस्ता मईहाँ उनीका खबर मिला कि होलिका आगी मईहाँ जलिकय मर गईं ।
फिर का ऊ दुःख मईहाँ पागल हुईगंय, ओउर रोवत पिटत होलिक कय चिता मईहाँ पहुँचे अऊर यहर वहर चिता कय राखी उडावैय लागें । ई का धुर उडावैयक परम्परा कहा जात हय । होली खेलय कय बाद जला होली का उडावा जात हय ।
नेपालगंज कय रानी तलऊवा कय होली के स्थान कय धुर होली खेलेक कय बाद उडावा जात हय । राम गोपाल जी अऊर मोहनलाल वैश्य जी भी अपनय साथी भाईन कय साथ होली खेलेक के बाद रानी तलऊवा कय होलिका के ठउंmवा मईहाँ पहुँच कय होली के धुर उडावत रहंय ।
बसन्त ऋतु मईहाँ ई होली परव मनावा जात हय । ई ऋतु मईहाँ तमामन मेर कय फल फुल फरत हंय । न जादा ठण्डा न जादा गरम । ई ऋतु मईहाँ रहत हय, ई मारे ई मौसम का सम्मान से ऋतु राज भी कहा गवा हय । बसन्त ऋतु का सब मौसमन से बढिया ऋतु माना गवा हय । (स्रोतः समाज जागरण साप्ताहिक)