Tuesday, November 4सत्यम खबर
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“आल्हा”

आज से चालिस–पचास वर्ष पहिले अवधी समाज मइहाँ गंगा दशहरा से लइकै भादौं मासान्त तक पुरुष वर्ग वालक से लइकै वयस्यक तक के लोगन के बीच अखाडा मइहाँ कूदै औ कुश्ती लडै कय प्रतियोगिता होत रहय, डंड–वैठक, मग्दर भाँजै, लाठी चलावै, अखाडा कूदब जस कसरतै करैक चलन रहय । गाउँ– घर कय बिटिया– बहुरिया झलुवा – झूलत रहीं । यी अवसर मइहाँ झलुवा झूलैं वाली मेंहरुवै “कजरी” ‘सावन’ बारह मासा जस लोक गीत गवति रहीं अउर पुरुष वर्ग “वीरगाथा महाकाव्य” कय रचना ढोलक–मँजीरा के साथ सुनावत रहें । यी काव्य एकल एवं सामूहिक दूनौ तरह से क्षेत्र–क्षेत्र कय अनुसार गावैक चलन रहा । वर्षत मइहाँ कौनव व्यापार– धंधा होत नाय रहय, तब आदमी लोग खाली रहत रहँय वही समय मइहाँ का रहैं अतः सोमवार कय दिन भगवान शंकर कय ब्रत–पूजन–हवन, कीर्तन करत रहें अउर वाँकी दिनन मइहाँ एक्कठै होइकै आल्हा गावैं औ सुनैक खातिर वडा इच्छा करत रहँय ।


अव यी “आल्हा” वास्ताविक गाथा का होय यहिके वारेम संक्षिप्त वर्षन करिबै । आल्हा कय गाथा भारत कय उत्तर प्रदेश से लइकै वुन्देल खण्ड तक के राजा– रजवाडन के वीच मइहाँ होयवाले युद्धन का लय वृद्ध लोक काव्य होय । पहिले के अल्हैत ई का मुहजवानी सुनावत रहें, मने अब उनकय सिर्कािडंङ्ग होई गई हय, ई के समाथ मइहाँ पिपिहिरी– ढोलक–मँजीरा आदि वाद्य यत्रन कय प्रयोग सुनाय परत हय । वह समूह गत वाला आनन्द अव नाँही मिलत हय । आल्हा मइहाँ हाँथी, घोडा, रथर रव्बा औ पैदल सेना कय वर्णान करत हयं, युद्ध कला– कौशल कय खूब वढा– चढायके वर्णन कीन जात हय, धनुष–वाण, तलवार, भाला, वरछी, साँग, ढाल, दुधारा ई आल्हा के समय कय प्रमुख हथियार रहे । घोड सवारी, पेंडो पर चढना, तौराकी, भेष परिवर्तन, जासूसी औ शरीर का कसरत करिकय वलिष्ट वनावै खातिर, लेजम, मुग्दर, लाठी, बाना, पैतरा, फरीगता लोग सीखा रहें । दौड– कूद जंगल–पहाड मइहाँ जायके औ चढै के गुण सिखाये जात रहें । आल्हा– गाथा से वहि समय कय सामाजिक धार्मिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अवस्था का पता– चलत हय आल्हा मइहाँ तिथि– त्योहार, देवी देवतन कय पूजा, एवं विवाह आदि संस्कार मनावै के तरीकन का वर्णन मिलत है । राजनैतिक के साथ साथेन कूटनीत का वहुत वडा हाथ हय जिके कारण वही बखा मइहाँ ५२ लडाई लडी गई ।
यी बवनौ लडाइन का बहुतै सरस औ सरल भाषा मइहाँ महाकवि जगनिक काव्य रुप मइहाँ वहुतै जोशिली शैली मइहाँ वर्णन कीन्हेन हयं । य िबवनौं लडाइन कय नाम हम हिंया उल्लेख करित हन् ।
१. पृथ्वीराज चौहान (दिल्ली के राजा) औ कन्नौज के राजा जय चन्द के वीच भई लडाई भारत के भविष्य कै दुर्भाग्य पूर्ण युद्ध रहा (यी लडाई मइहाँ देश के वडे वडे सूरमा मारे गे, भारत वीरन से खाली होइ गा यही अवसर कै फाइदा उठाय के मोहम्मद गोरी– जयचन्द का अपनी ओरिया मिलायके दिल्ली के महाराज पृथ्वीराज चौहान का बन्दी बनायके अपने साथेन लइगा हुाँवा उनकै आँखी फोराय के जेहहल मइहाँ डारि दिहिस – युद्ध मइहाँ पृथ्वीराज चौहान कै दरबारी कवि चन्द वरदाई खोजत– खोजत मोहम्मद गोराी के दरवार मइहाँ पहँचि जात है । हुँवा उई गोरी से पृथ्वीराज चौहान कय शव्द भेदी वाणचलावै के प्रशंसा करत हयं । शव्द गोरी वाण कय कला कय प्रदर्शन करावैक खातिर एक स्थान वनावा जात हय नगर भरकय लोग देखय के खातिर एक्ठा होत हयं । एक तरफ कुछ दूरी मइहाँ पृथ्वीराज चौहान धनुष वाण लै के खडे होत हय–दूसरी ओरिया राजा लोहे के बने सुरक्षा कवच मइहाँ बैठत हय, प्रर्दश शुरु होय के पहिले चन्द्र वरदाई पृथ्वीराज चौहान औ गोरी के वीच कय दूरी नापि लेत हैं, वीच मइहाँ एक घण्टा टाँगा जात हय जिहमा निशाना लगावै के खातिर बाँधा गा रहय । घण्टा बजावा गा औ पृथ्वीराज चौहान आवाज सुनिकै घण्टा मइहाँ वाण मारि दिहिन वही समय चन्द्र वरदाई एक दोहा कहत हयं जिहका हुँवा के लोग नाही समझि पाइन ।
दोहाः– चारि वाँस, चौबिसगज, अंगुल अष्ट प्रमाण
इतने पर सुल्तान है मत चूकौ चौहान ।
यी दोहा कहै के वादि फिर घण्टा बजाइन पृथ्वीराज फिर घण्टा मइहाँ वाण मारि दिहिन यी कला दिखिके गोरी ‘वाह‘’ ‘वाह’ कहिकै अपने लौह कवच मइहाँ खडा होइगा । वहिके वाह– वाह आवाजै पर पृथ्वीराज वाण मारि दिहिन गोरी के सिर धधडसे अलग होइकै गिर पडा यहर चन्द्र वरदाई पृथ्वीराज का कटार दिहिन दूनौ जनें अपने अपने सीनेमा कटार मारि कय अन्त करि लिहिन–दिल्ली कन्नौज अउर राजा रजवाडन वीर खतम होय कय कारन भारत मुस्लिम सम्राज्य का गुलाम होइगा ।
अइसन औरिउ लडाइन कै कथा हय जिहका विस्तार से लिखय मइहाँ पूरी किताब वनि जाई अतः लोगन कै जानकारी के वारेम लडाइन कै नाम उल्लेख करिबैः–
२ः– रतीभान कै लडाई ३ः– महोवा कय लडाई ४ः– माडौ कै लडाई ५ः–अनूपी टोडरमल कै लडाई ६ः– सूरजमल कय लडाई ७ः– करिंया कय लडाई ८ः– जबमे राजा कै लडाई ९ः– सिरसा गढ कय लडाई १०ः– आल्हा कय व्याहु नैनागढ कय लडाई ११ः– पथरीगढ कय लडाई १२ः– चौरीगढ कै लडाई १३ः– राज कुमारन कय लडाई १४ः– वीरशाह राजा कै लडाई १५ः– दिल्ली कै लडाई १६ः– दरवाजा कै लडाई १७ः– मडवातरे कै लडाई १८ः– नरवरगढ कै लडाई १९ः– इन्दल हरण २०ः– बलख–वुखारा कै लडाई २१ः– अभिनन्दन कै लडाई २२ः– आल्हा निकासी २३ः– लाखन कै व्याह, २४ः– मोती जवाहर कै लडाई २५ः– राजा गंगाधर कै लडाई २६ः– गाँजर कै लडाई २७ ः–हरी सिंह– वीर सिंह कै लडाई २८ः– सातन राजा कै लडाई २९ः–राजा कमला पति कै लडाई ३०ः–भूप गोरखा वंगला कै लडाई ३१ः– बादशाह आदिक कै लडाई ३२ः– लाखन कै गौना कै लडाई ३३ः– सिरसा गढ कै दूसरी लडाई
३४ः– चौडा राय औ मलखान कै लडाई ३५ः– धीरसिंह औ मलखान कै लडाई ३६ः– गुजरिया सेरावय कै लडाई ३७ः– अभई रंजित कै लडाई ३८ः– ब्रम्ह कै लडाई ३९ः– गोगी रुपमा आल्हा–उदल कै लडाई ४०ः– आल्हा मनौआ ४१ः– सिंहा ठाकुर परहुलवाला कै लडाई ४२ः– गंगा सिंह कोडहरी औ आल्हा कै लडाई ४३ः– नदी बेतवा कै लडाई ४४ः– लाखन औ पृथ्वीराज कै लडाई ४५ः– ऊदल कै नही बेतवा कै लडाई ४६ः– बेलवा कै गौैैैैैैना पहिली लडाई ४७ः– बैला कै गौना दूसरी लडाई ४८ः– ब्रम्हानन्द घायल होय कै लडाई ४९ः– बेला ताहर कै लडाई ५०ः– चन्दन वागिया कै लडाई ५१ः– चन्दन अम्बा कै लडाई ५२ः– बेलवा कासती होव ।
उपर्युक्त सव लडाइन कै वर्णन राजा पर माल कै जागीरदार महा कवि जगानिक किहा हैं ।
आल्हा कै संक्षिप्त मइहाँ कथा वस्तु
भारत के उत्तर प्रदेश मइहाँ हमीरपुर जिल्ला अन्र्तगत “महोवा” एैतिहासिक नगर है । महोवा वारहवीं शाताव्दी कै एक वहुतै शबिmशाली राज्य रहा । हिंया परिहा चंदेलवंशी राजा परमाल कै राज्य रहा । राजा परमाल कै समकालीन दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान औ कन्नौज के राजा जयचन्द इनहूँ लोग शक्तिशाली राजा रहें एनका सवका आपस मइहाँ घनिष्ट सम्बन्ध रहा । आल्हा कै गाथा अनुसार आल्हा –उदल राजा परिमाल कै सेनापति रहे यी क्षत्रिय जाति मइहाँ ‘वनाफर’ जाति जौन छोट जाति के क्षत्रिय माने जात रहें उन्हिन के वंश के रहें । राजा परिमाल कै रानी ‘मल्हना’ वहुतै रुपवती औ शद्धिमती नारी रहैं ।
गाथा कै अनुसार बिहार के बक्सर स्थान से देशराजा, वच्छराज, रहमल औ टोडरमल यी चारै जना महोवा मइहाँ आये रहें वही बखत मइहाँ महोवा कै ऊपर माडौ का राजा करिंगा राय आक्रमण करिन रहय । ऊ मा ईन दूनौ भाई देशराज – वच्छराज कै बहादूरी कै कारन करिंगा रायहारिकै भग जात है पर धोखे से यी दूनौ भाइन का पकराय के इनका सिर काटिकै वरगद के विरवा मइहाँ लटकवाय देते है बाँकी शरी का कोल्हूँ मइहाँ पेरवाय देत है ।
ऊ बखत मइहाँ इन दूनौ भाइन के लरिका आल्हा उदल औ मलखान– सुलखान छोट भाई रहे – यी दूनौ भाइन कै पत्नी अर्थात आल्हा ऊदल कै महतारी कै नाम देवल औ पिता देशराज रहें । मलखान औ सुलखान “विरम्हा” से पैदा भये पिता वच्छराज रहें । अपने वाप कै बदला लेयक खातिर आल्हा –ऊदल, मलखान– सुलखान परमाल राजा कै सेना लइकै माडौ परिहा हंमला करिकै करिंगा राय का होल्हु मइहाँ पेरवायके वाप कै बदला लेयकै लडाई का वर्णन है ।
देवल औ विरम्हा दूनौ सग्गै बहिन रहीं औ दूनौ सग्गै भाइन कइहाँ व्याही रहीं । एनके पिता दलपति सिंह ग्वालियर के राजा रहें । यी दूनौ वहिनी वहुत बुद्धिमती औ बलशाली रहीं यवीसे एनके कोख से महावलशाली पुत्रन कै जन्म भवा । यी लोग क्षत्रिय रहें मने पत्नी अपने से छोट जाति कै होंय के कारन यिनकै जाति ‘वनकर’ रही । यिनके हिंया कोई विवाह नाय करत रहय अतः यिनके सव भाइन कै व्याहु जवरजस्ती लडाई के द्वारा भवा, अतः विवाह कै लडाई गौना कै लडाई जस तमाम लडाइन कइहाँ वर्णन यी गाथा गायी गई है औ लिखी गई है ।
ऊदल के बडे भाई ‘आल्हा’ जिन कै गाथा मइहाँ अमर कहा गा है, सव महावीर योद्धा यी युद्धन मइहाँ मारे जात है पर आल्हा नाई मरत अतः उनका अर कहा गा है यही से यी गाथा कै नाम हैं ‘आल्हा’ रक्खा गवा है । आल्हा अउर ऊदल दूनौ युद्ध कला मइहाँ माहिर नैतिकवान, ईमानदार एवं शूरवीर योद्धा रहें । अपने वाहुवल कै कारन उई यी सव लडाइन मइहाँ बिजय पाइन ।
यी गाथा मइहाँ पृथ्वीराज चौहान, जयचन्द करिंगाराय पथरीगढ, बूँदी, बौरीगढ, नरवरगढ, नैनागढ, विठूर उरई, कन्नौज ? बेतवा, महोवा, सिरसागढ, माडौ, वेतवा आदि गढन के राजन कइहाँ औ राजकुमारन कै वर्णन है ।
आल्हा –ऊदल, मलखान, सुलखान, ब्रम्ह, ढेबारानी मल्वान, देवल, विरमा, सोनवा, फुलवा औ माहिल राजा ऊरई कै रुपनावारी, शैयद, बेला, इन्दल जस चरित्रन का ब्रम्हन वर्णन है ।
आल्हा वीरगाथा मइहाँ वर्णित भवा कुछ विशिष्ट स्थलन कै नाम निम्न अनुसार वर्णित कीन गे हैं ।
१ः– महोवा – जिल्ला हमीरपुर– उत्तर प्रदेश भारत, २ः– कन्नौज– कानपुर के पास उत्तर प्रदेश ३ः– सिरसागढ– ग्वालियर जमुना के पास ४ः– नरवर चम्बल क्षेत्र ५ः– बूँदी गढ (चितौड के उत्तर) ६ः– माडौ नर्वदा नदी के उत्तर मइहाँ ७ः– बेतवा नदी महोवा मइहाँ जमुना के सहायक नदी ८ः– उरई – कानपुर ९ः– नरवरगढ –ग्वालियर राज्य मइहाँ १०ः– नैनागढ – भोजपुरी प्रदेश मइहाँ ११ः– बिठूर– कानपुर गंगा किनारे १२ः– खजुहागढ– छत्तरपुर राज्य १३ः– वौरीगढ–बुन्देल खण्ड मइहाँ परत है ।
अइसन ऊदल कै जेठ भाई ‘आल्हा’ कै नाम से यी वीर गाथा ‘आल्हा’ के नाम से पूचलित भवा है ।
नेपालगन्ज–११ भवानीवाग नेपालगन्ज (बाँके) (स्रो. समाज जागरण साप्ताहिक)

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