Saturday, November 23सत्यम खबर
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खिचरी

हमरे अवधी समाज मईहाँ माघ महिना के संक्रान्ति कइहाँ खिचरी के त्योहार के रुप मइहाँ मनावा जात हय । खिचरी काहे नाउ परा हय ईमा भी एक कारन है । यदि दिन मइहाँ सकारेन नहाय धोय के खिचरी छुवा (पुन्य) कीन जात है जिहमा चाउर मइहाँ उर्द कय दाल गबडा रहत हय वही खिचरी के सीधा मइहाँ नोन,मिर्चा आलु घियू गोभी यी सब सामान कईहाँ छुई के पण्डित ब्रम्ह्ण कइहाँ दान कीन जात हय । यी दिन के भोजन मइहाँ भी खिचरी खावा जात हय । खिचरी माने चाउर मइहाँ उर्द दाल गवडा गील, गील भात कइहाँ खिचरी कहत हँय । वहीमा आदी नोन परा रहत हय । खाय के समय खुब घिउ डारत हँय । साथेन आलू केर भरता आलु केर कचालु पापड ई सब दुपहारे केर भोजन होय ई सब चीज खायक कारन ई हय कि जाडेम जउन हमरे देही केर चिकनाई खतम होई जात हय । शरीर मइहाँ फिर से नवा ताकत देयके खातिर घिउ आदी, पापड आलु खावा जात हय । जिहसे जउन शरीर मइहाँ शक्ति कम होय जात हय ऊ पुरा होय जाय ।


खिचरी केर त्योहार हमरे समाज मइहाँ बडे खुशी से मनावा जात हय । यहि दिन मइहाँ सब कोई अपने बिटिया, दमाद, सर –समधी कइहाँ न्योता दयके बोलावा जात हय । संझाके घर मइहाँ पूरी तरकारी बरिया, उर्द केर दाल, भात, चटनी जस सामान बनत हय । महिमान कइहाँ पहिले जेंवायके तब सब घर वाले जेंवत हय ।
खिचरी केर पर्व (त्योहार) के धार्मिक मतलब भी हय । माघ संक्रान्ति कइहाँ सूर्य उत्तरायण होई जात हय । तवही से शुभ काम (विवाह, गौना, मुडन) होय लागत हय । महाभारत मइहाँ जब भीष्म पितामह कइहाँ अर्जुन बाँड से छेद के बाँड के संया पर सोवाय दिहिस रहय तब भीष्म पितामह अपन प्राण नाई त्यागिन रहँय, जब सूर्य उत्तरायण भवा तबहिन ऊ अपन प्राण त्यागिन रहँय । खिचरी संक्रान्ति से खर मास समाप्त होई जात हय । औ मंगल कार्य शुरु होत हय ।
ई खिचरी माघ संक्रान्ति मइहाँ धार्मिक नदी, गंगा मइहाँ राप्ती नदी मइहाँ स्नान करयक बहुत पुरान परम्परा हय । ई खिचरी केर त्योहार सब हिन्दू समुदाय के लोग अपने, अपने रीति रिवाज से मनावत हय । पहाडी समुदाय मइहाँ ई माघे संक्रान्ति के नाव से मनावत हँय । ई मा खिचरी के साथेन तिल कै लड्डु, गंजी, तरुल, भेली केर पापडी ई सब चीज कइहाँ खात हँय । ई सब सामान शरीर कइहाँ ताकत देय वाला चीज होय । सबेरेन नहाय के पूजा कइके सब छोटबडे रंगा भवा लाल चाउर केर टीका लगावत हँय । अउर खुसियाली से खिचरी खात हँय ।
ई माघे संक्रान्ति शुद्ध धार्मिक त्योहार होय आज कालिह ईमा बडा गडबड होई गवा हय । खसी, मुर्गा कै मास औ दारु कइहाँ ईहमा प्रवेश होय गवा हय । जिहसे जउन सहजता, भाई चारा प्यार मोहब्बत त्योहार मइहाँ सबसे होयक चाही वहमा कमी आईगवा हय । सबके साथेन हिल मिल के त्योहार मनावा जाय । सबका अपनै समझा जाय त्योहार केर सन्देश यही होय । यही मइहाँ सब समुदाय केर उन्नति छिपा हय ।
थारु समुदाय मइहाँ यी माघे संक्रान्ति खिचरी कइहाँ ‘माघी’ के नाम से मनावत ह“य । थारु समुदाय केर यी सबसे बडा त्योहार होय । यही माघी से थारु लोगन केर नवा साल शुरु होत हय । उन्हँु लोग सवेरेन नहाय के चाउर दाल, तरकारी सर सीधा छुइके पुण्य करत हय । वह के वाद मइहाँ खान पीन शुरु होत हय । अपने से बडे लोगन केर आर्शिवाद लेय खातिर बडे लोगन के घर जायके गोडेम मूड धइके प्रणाम करत हँय अउर आशीष लेत हँय । थारु समुदाय मइहाँ माघी के खान पान मइहाँ ‘जा“ड’ जउन भात कइहाँ सराय के बनावत हँय । वही कइहाँ जा“ड कहत हँय । ऊ बडा नशा देय वाला होत हय । वह के साथे मांस के तरकारी खात, खवावत, पियत, पियावत हँय । बडा आत्मियता से माघी केर त्योहार मनावत हँय । दोसर थारु समुदाय केर आकर्षक चलन होय । माघी केर नाँच । ई नाँच मइहाँ गांव भरि के लोग सम्मिलित होत हँय । थारु, थरुइन लरिका बिटिया बनिके मादल के ताल परिहा नाँचत हँय । अउर गाना मइहाँ सब लोग साथ देत हँय । ई बहुत बडा नाँच होय ईका ‘बडका नाँच’ भी कहा जात हय । थारु समुदाय मइहाँ माघी पर्व आठ, दश दिन तक चलत हय । यही माघी से नवा काम केर शुरुवात करत हय । नाच आठ–दश दिन तक होत हय । गीत रोजै बदल बदल के गावा जात हय ।
थारु समुदाय केर माघी, पहाडी समुदाय केर माघे संक्रान्ति, अवधी समुदाय केर खिचरी सब एक्कै होय । अपने, अपने रीति रिवाज से मनावयक कारन खाली नाम फरक हय । सब के उद्देश्य एक्कै हय । सब कोई समाजमा भाई–चारा मेल मोहब्बद से खुशी के साथ रहा चहत हँय ।

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