मिति : २०७८ अषाढ ९ गते
– विजयकुमार बर्मा
एक गाँव रहे उकयनाम रहे सुखरामपुरवा । सब बडे आनन्द से रहत रहें।अपने परम्परा अनुसार गाँव कै चौधरी चलावत रहें । कुछ लोगकहिन अब यस नचली । सब कोई मिलिकै चलावाजाई ।
यी चौधरी का हटाय देव । सब कोई लागे चौधरी का हटावे मे सब आपनआपनतर्क लगाइन । बातिभवा कि चुनाव से बनावाजाय । सबमानिगये । कवनो मेर से सब जनेलागे चौधरी के पद का हथियावैम।चौधरी रहे बडें चालक, जातपात ऊंचनीच सब हथकण्डा अपनायलिहिन । गाँव केर सब बिरादरी बट गयें ।
अब कोई कोई के बातिमानतै नाही रहें । तब सल्लाहबना जे अपने लंग सबसे सैगर आदमी बटोरी,वहीबनी।रोजै कसरत होयकब्बो कोई के लंग कुछ जुट जाय । कब्बो वही दुसरे का होयक चाही कहें लागे, ‘कवनो बाति बनै नाही । एक दिन जुटा सबजने पंचायत करत रहें । वही साइत एक साधु आवा सब कहिन, ‘बाबाबतावो कुछ ज्ञान देव ।’
उ देखिस, बाति समझिस, ‘तु लोग मेंढक का तराजु मा तौलतहौ, यी कबहुँ नाही तौल पइहौ । हमार बातिमानो तो ओसरीओसरी भागलगाय लेव ।’ तबहिंन से उ गाँवमा सब चौपट होइ गवा । अब उकय नाँव दुर्दशापुरवा होई गवा ।
(स्रोत ः समाज जागरण)