मितिः २०७८ अषाढ ९ गते
– हंसा कुर्मी
नदियन मे बहुतै पानीबहिगवा रहा । समय करवट बदलतबहुतआगे चलि गै रहा लेकिन रघ्घु कै जिन्दगीजइसै के तइसै । बियाहकिहे दुइ–चार महीनातौ भवा रहा, वोकर मेहरारुइन्द्रमतीवोका घर से निकारि दिहिस रहा । उहौ जिद्दी, सोचिस जब तक रुपयाकमाइकै मकान न बनाय लेब तब तक लउटब नाही ।
घर से निकरैक बादसिधै गुजरात चलि गवा । एक ठु कम्पनी मे काम करै लाग । घर छोडे दश महीना बाद, गाँव केर रजुवा बताइस तोहरे बच्चा पयदा भवा है, नाही अइबो ?
रघ्घु एक ओर खुशी भवा लेकिन एक घरि सोचि कै उदास होय गवा । वोकरे दिमाग पर घर से निकरि गवा दिन वाला बाति छाय गवा । राप्ती उतरत के उ बहुतै बेर मुँह धोइस रहाऔ गाँव के ओर घुमि कै देखिस रहा ।
उ आपन दशा केहु का सुनायतक नाही पावत रहा । उ तौ सुने औ देखे रहा कि मर्द मेहरारु का निकारि दिहिस कहिकै लेकिन वोकरे साथ ठीक उल्टा भवा रहा ।
रजुवा कहियो काल फोन कइकै गाँव कै हाल बतावत रहा,‘रघ्घु दादा जबसे आपगाँव छोडें हौ, वहिदिन से बहुतै बातिगाँव मे सिद्धा होतै जात है ।’ वोकार सब बाति सुनि लेत रहाऔ सोचत रहा, ‘हमार तौ नसिबियै उल्टा, जवनहोत है, जवनकरित है तवन सब उल्टा !’
(स्रोतः समाज जागरण साप्ताहिक)