२०७७ चैत २१ गते
अवधी भाषा कै भाषा विज्ञान कै दृष्टि से विवेचन करय से पहिले हिन्दी भाष कै सर्दभमा अवधी कै कैसन स्थित है ? यहिका जानबु जरुरी है । हिन्दी भाषा केर निम्नलिखित दुई उपभाषा या बिभाग मानी गई है । १ः– पश्चिमी हिन्दी २ः– पूर्वी हिन्दी कै निम्नलिखित तीन वाली मानी गई है । १ः– अवधी २ः– वधेली ३ः– छत्तीसगढी पश्चिम हिन्दी कै पाँच वोली मनी जाती है । कौरवी, वाँगरु, कजकन्नौज, वुन्देलखण्डी ।
भाषा वैज्ञानिक लोग पश्चिम हिन्दीका शौरसेनी अपभ्रंश ते औ पूर्वी हिन्दीका अर्धमागधी अपभ्रंश ते व्युत्पन्न औ विसित मानत हैं । असमिया, बंगाल, उडिया औ बिहारी भाषाएं मागधी अपभ्रंश से व्यत्पन्न औ विकसित मानी गई है । ऐसन अवधी एक तरफ तो पश्चिमी हिन्दी की बोलिन से प्रभावित है औ दुसरी ओरिया वंगाल, असमिया, उडिसा औ बिहारी भाषन से प्रभावित है । भाषायी विकास कै प्रक्रिया यह सिद्ध करति है कि अवधी भाषा कै निर्माण औ विकासमा खडीबोली, ब्रज कन्नौज, वुन्देलीखडी, वाँगाली, मागधी, मैथली औ भोजपुरी भाषन कै महत्वपूर्ण भूमिका नाहीं है वल्किइन सबकै रचनातत्व अवधी कै संरचना मा संयोजित है । साहित्य रचना औ वोलचाल कै स्तर पर अवधी कै दुई रुप देखाय परत है १ः– मानुक अवधी भाषा २ः–वोलचाल कै अपधी या लोक बोली ।
भाषा कै संरचनागत औ प्रकार्यगत स्वरुप कै बिवेचना सैधान्तिक औ प्रायोगिक भाषा विज्ञान कै आधार पर कीन जाय सकत है । विषय वस्तु भेद से भाषा विज्ञान कै चार स्वरुप से बिभाजन कीन जा सकत है । १ः– संरचनात्मक भाषा विज्ञान, मनोविज्ञान, २ः– समाज भाषा विज्ञान औ ४ भाषा कै समाज शास्त्र । संख्यात्मक भाषा विज्ञान का ५ भागमा वाूटा गा है ।
१ः– ध्वनि विज्ञान २ः– शव्द विज्ञान ३ः– पद विज्ञान ४– वाक्य विज्ञान ५– अर्थ विज्ञान अव तक अवधी भाषा कै मूल्यांकन संरचनात्मक भाषा विज्ञान कै उपयुक्त पाँचौं विभागन कै आधारमा भवा है । अध्ययन पद्धतियन कै दृष्टि से भाषा विज्ञान निम्न प्रकार से मानी जात है । १ः– वर्णनात्मक भाषा विज्ञान २ः– ऐतिकासिक भाषा विज्ञान ३ः– तुलनात्मक भाषा विज्ञान ४ः– क्षेत्रीय कार्यपद्धति पर आधारित भाषा विज्ञान यन प्रयोगिक भाषा विज्ञान ।
अवधी भाषा कै मूल्यांकन ऐतिहासिक, तुलनात्मक एवं प्रायोगिक अध्ययन पद्धतियन से वहुत कम भवा है । अवधी ध्वनि विकास, शब्द सम्पदा, पद विकास, वाक्य रचना औ अर्थ प्रयोग दृष्टि से हिन्दी कै सर्वाधिक सशक्त सम्पन्न औ समृद्धि वोली हवै । यहिमा मानक हिन्दी कै समस्त स्वर ध्वनियन के साथै–साथ ऐ– औ संयुक्त स्वर औ अई –अउ स्वर संयोग कै प्रयोग मिलत है । व्यञ्जन ध्वनियन माकक ‘ण’ नासिक व्यञ्जन स्वर कै स्थान पै व्यञ्जन कै प्रयोग मिमलत है । व के स्थान पे ब कै प्रयोग मिलत है । अवधीमा तालब्य ‘श’ औ मूर्धन्य ष कै प्रयोग नाूही मिलत केवल वत्स्र्य ‘स’ कै प्रयोग मिलत है । ब औ स के प्रयोग दृष्टि से अवधी–वृज से बहुत मेल खात है । मानक हिन्दी कै तुलना मा अवधी मा अवधी अनु नासिकता ‘’–‘चन्द्रबिन्दी कै प्रयोग अधिक मिलत है । यी दृष्टि से अवधी भोजपुरी से वहुत मेल खाति है । अवधी –वृज, अवधी–कन्नौज अवधी– भोजपुरी कै तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो वहुत समानता देखाय परत है । इन बोलिन मा मिलत वाली संरचना गत समानता पश्चिमी हिन्दी औ पूर्वी हिन्दी कै उद्भव –विकास कै प्रयोग प्रक्रिया पै प्रश्न चिन्ह लगावति है । नाता – रिश्ता वोधक बव्द, सम्बोधन शव्द, अभिवादन परक शव्द अवधीका पश्चिमी हिन्दी कै वोलिन के निकट स्थापित करत है । पद रचना कै दृष्टि से अवधीमा पुल्लिंग प्रकाशनमा ‘वा’ (अ) औ स्त्रीलिंगमा या– इन प्रत्यन का प्रयोग कीन जात है । अवधी बहु वचन कै प्रकाशनमा न्ह, न्हि विमोक्ति प्रयोग होति है ।
कारक प्रकाशन मा प्रयुक्त परर्सग वहुर्सग, वहु आयामी औ वहुस्तरीय है कर्मकारक कह–कहूू, करण औ अयादीन कारक मा सह–, सहू, सहूू, सै, सैं, सन पर सर्गन कै प्रयोग होत है । सम्प्रदान कारक मा कह, कइँ, लिह, लिएू आदि वहु विकल्पी पर सर्गन कै प्रयोग होत है । सम्बन्ध कारक कै प्रकाशन मा ‘क’ केर–केरि वहु उपवोली वोधन पर सर्गन कै प्रयोग होत है अधिकरणमा मह, महू, मक्ष, पह पहू, पै, वहु उपयोगी पर सर्गन कै प्रयोग होत है ।
सर्वगत रुपन कै दृष्टि से अवधी–वृज औ खडी वोलीका प्रभावित करत है । प्रथम पुरुष वोधक ई–ऊ–इन्ह ऊन्ह, मध्यम पुरुष वोधक तू, तैं, तुम्ह ऊत्तम पुरुष वोधक कै सम्बन्ध प्रकाशन मोर, तोर, तुम्हारसर्वनाम वाँगला औ भोजपुरीका प्रभावित करत है ।
अवधी भाषा नाम– पदन कै साथै–साथ क्रिया रुपन कै प्रयोग कै दृष्टि से हिन्दी कै सर्वाधिक समृद्ध भाषा है । अवधीमा २ प्रकार की सहायक क्रिया औ औ मुख्य क्रियन कै रुपमा प्रयुक्त कीन जात हैं । १ः– कृदन्ती क्रिया, २ः– तिडन्ती क्रिया ।
कृदन्ती क्रिया ः– ऐसी क्रिया होंय जो लिंग औ वचन से प्रभावित रहती है उनका कृदन्ती क्रिया कहा जात है । अवधी भाषामा प्रयुक्त कृदन्ती क्रियन कै काल भेद निम्न लिखित तीन भागनमा विभाजित कीन जा सकत है । वर्तमान – भूत औ भविष्य काल कै मुख्य क्रिया यें ।
जावत – जवति– जात – जाति वर्तमान काल कै मुख्य क्रिया लिंग औ वचनन से प्रभावित होय कै कारन कृदन्ती क्रिया होंय । लीन्ह, लीन्हि, दीन्ह, दीन्हि, कीन्ह, कीन्हि जैसिन क्रिया भूतकाल कै कृदन्ती होंय करब करिस, चलस, चलसि, मारस, मारिस, कहब–कहबि आदि भविष्य काल क्रिया कृदन्ती होंय । कृदन्ती क्रियन कै कारण अवधी (वृज औ खडी वोली ते गहन औ व्यापक सम्बन्ध रखत है । साहित्य रचना औ प्रयोग कै दृष्टि से विश्व संदर्भ मैंहा संस्कृत भाषा औ अंग्रेजी भाषामा कृदन्ती क्रियन कै प्रयोग नाूही होत । अन्तरक्रिया प्रयोग कै आधारमा अवधी संस्कृत से भिन्न भाषा है ।
तिडन्ती क्रिया ः– यी ऐशन क्रिया होंय जौन लिंग से मुक्त परन्तु पुरुष औ वचन से प्रभावित रहती हैं इनका तिडन्ती क्रिया कहा जात है । अवधी भाषा मा प्रयुक्त मुख्य तिडन्ती क्रियन का काल भेद से तीन भाग मा वाँटा जा सकत है ।
१ः– वर्तमान काल २ः– भूतकाल ३ः– भविष्य काल आबहि– आबहिं –आवइं औ आवैं–जावैं क्रिया वर्तमान काल का दर्वाउती हैं । अवधी मा प्रयुक्त कहिसि, दिहिस, कहेउ, गयेय, दीन्होसि, लीन्हिस, कीन्हिस जैसन क्रिया भूतकाल मा प्रयुक्त मिलत हैं । लीन्हा– लीन्ही–लीन्हे जैसन क्रियारुप आ, ई–ए प्रयत्न अडी वोली कै होंय कीन्हेसि–दीन्हसि–लीन्हेसि क्रियारुप कृदन्ती क्रियारुप कै तिडन्ती करण रुप होय ।
जाइहि–जाइहिं–जायहुँ– जैहूँ अवधी मा प्रयुक्त भविष्यत काल कै वोधक तिडन्ती क्रियारुपन मा विविधता मानक अवधी कै लो, अवधी कै स्थानीय औ अवधी कै क्षेत्रीय रुपन स सम्वृद्ध सिद्ध करति है ।
अवधीमा एकाथृता, अनेकार्थता, पर्यायता औ विलोमार्थता का आधार बनायके अवधी कै विकसित रुप का स्पष्ट कीन जाय सकत है । समाज भाषा विज्ञान औ क्रिया का समाज शास्त्र कै निम्नलिखित आयाम या पक्ष माने गए हैं (१) बहुभाषिकता औ कोड चयन (२) भाषा द्वैत (३) भाषा मानकी करण (४) भाषा विस्थापन (५) भाषा अनुरुपता (६) भाषा नियोजन (७) भाषा विस्तारीकरण ।
उयर्युक्त एक–एकका आधार बनाकै अवधी का शाोधध कै दृष्टि से बिबेचन कीन जाय सकत है । प्रायोगिक भाषा विज्ञान कै निम्नलिखित अंग माने जात है १ः– अनुवाद विज्ञान २ः– शैली विज्ञान ३ः–कोश विज्ञान ४ः– भाषा शिश्रण ।
उपर्युक्त समस्त पक्षन का आधार बनाय कै अवधी भाषाम अनेक नवीन शोधकार्य समपन्न होइ सकत हैं । शोध कै दृष्टि से केवल अवधीयै कै– नाँही मानक हिन्दी औ भाषा केर सगरीउ वोलिन का आधार बनाकै शोध कार्य कीन जाँय तो अवधी कै सीमान्त क्षेत्रन कै वोली भोजपुरी, वृज, कन्नौजी औ वुन्देलखण्डी आदि वोलिन कै सीमा औ स्वरुप स्पष्ट होइ सकत है । भाषा नियोजन, भाषा मानकीकरण, भाषा विस्थापन, भाषा अनुकरण, भाषा द्वैत औ भाषा विस्तारीकरण, समाज भाषा विज्ञान कै विभिन्न पक्ष इन संदर्भनमा लोकोपयोगी वनि जा हैं अवधी कै विवेचा यी सबै संदर्भनमा आवश्यक है । (स्रोतः समाज जागरण साप्ताहिक)