२०७७ माघ १८
आज से लगभग ५८–५९ वर्ष पहिले कय बात होय । एक दिन हम अउर हमार दोस्त अख्तर अली दूनौ जने पूर्विया महराज कय फुलवारिम आम वीनै गए रहन वही मौकप एक बाँदर से हमार दूनौ जनेक कुस्ति होइ गवा रहय । किस्सा कहानी ई मेर हय ।
पूर्विया महराज कय फुलवारी रानी तलाऊ कय पूर्व मईहाँ अवस्थित दुई मन्दिर श्री लक्ष्मी नारायण अउर श्री राम जानकी मन्दिर मइसे एक होय । श्री लक्ष्मी नारायण मन्दिर पूर्व दक्षिण कोने पर हय तब श्री राम जानकी मन्दिर पूर्व तर्फ अवस्थित हय । ई मन्दिर कय बोल चाल कय नाम मईहाँ पूर्विया महराज कय फुलवारी या काशी देई कय फुलवाई कहिकय जाना, चिन्हा जात रहय ।
पूर्व मईहाँ रानी तलाऊ अवस्था एक तीर्थ सरोवर जस रहय । ई कय चारौ तरफ घाट बने रहय । पूर्व तर्फ थोरा खुला रहय जहाँ से पशु जीव – जन्तु अउर पशु पानी पियत रहय । कुछ लोग लडिया सहित अपने जनावर कइहाँ पानी भी पियाय लेत रहय । रानी तलाऊ कय चारौ तरफ बरगद अउर पीपर कय पेड रहय । ई पैडन पर बाँदर बहुत रहत रहय । चमगादडन कय भरमार रहय । गर्मी अउर आम कय समय तब बाँदरन कय मेला रहत रहय । तलवम् नहाय अउर बगियन मईहाँ आम खात रहय ।
एक समय कय बात हय कि हम (बिष्णुलाल कुमाल) अउर हमार बचपन कय दोस्त अख्तर अली दूनौ जने दुपहरी मईहाँ पूर्विहा महराज कय फुलवारी कय छहरा देवगरिप बैठ रहेन । पूर्विया महराज कय फुलवारी कय क्षेत्रफल असय अब कय चार गुना जादा रहय । आज भी ई मन्दिर हम लेकिन ईन कय अवस्था एक दम खराब हय । ई कय लगभग तीन गुना हिस्सा महेन्द्र माध्यमिक विद्यालय मईहा चला गवा हय ।
ई मन्दिर कय चारौ तरफ मोटी इन्ची दिवार मोटी रही हम लोग उके ऊपर बैठे रहा जात रहय । हुवाँ पेड कय छाया रहत रहय । मन्दिर कय पूरा उत्तरी हिस्सा मइहाँ आम, जाचुन, बेल कय पेड रहय जिन कय छाया बराबर रहा करत रहय । मन्दिर कय पूर्वी हिस्सा बाद मइहाँ जिलानी रंगरेज खरीद लिहिन रहय । तब से ई जिलानी कय हाता कय नाम से आज भी जाना जात हय । ई फुलवारी कय पूर्वी उत्तर देवाल पर हम लोग अक्सर बैठा जात रहय । अउर हियाँ से आपन भैंसा देखा जात रहय जउन आस पास कय खेतन मइहाँ चरा करत रहय ।
हमरे पिता जी बट्इया अथार्त अधिया मइहाँ खेत बोवत रहय । जउन बाद मइहाँ काले पहडिया खरीद लिहिन रहयँ । उन से भी काफी समय तक ई खेत बटईया मइहाँ लिहिन रहय ।
हम अउर हमरे मित्र अक्तर बढे ध्यान से बैठे रहन तब तक हम लोगन कय पिसाब लाग तव सोचा गा चलौ कुँवा मइहाँ पानी पी आवा जाय जउन फुलवारिम बना रहय । ई कुँवा अपने जीर्ण अवस्थाम आज भी हय । कुँवा पइहाँ एक छोट बाल्टी सदा रहत रहय ।
जिमा डोरी लाग रहत रहय । हम लोग बाल्टी से पानी भरिकय पिया गवा । जइसे चलैक सोंचा गा कि एक बडा आम (माल्दा) जोर से गिरा हम लोग आम के तरफ दौडि गएन लेकिन हमै बाल्दी रख्खैम समय लाग अउर अख्तर थोडा आगे बढि गवा रहय । तबही हम का देखा कि दूसरी तरफ से एक बाँदरउ भी ऊ आम उठावैक आगे बढा रहय ।
जइसे अख्तर आम उठाइस तइसै बाँदर भी आम के तरफ हाथ बढाइस अउर आम का छाडिके ऊ अख्तर के तरफ बढा अख्तर डरकय पिछे खसका । हम सोंचेन कि अख्तर छपकी लइकय बाँदर का डरवायेयन । लेकिन ऊ बाँदर डरैक जगह हमरे पास आय गवा अउर दूनौ हाथ हमरे कंधेप रखिकय हमरे मुँह मइहाँ काटै चला । हम तव बाँदर के ई कृया कलाप कय एक हम आशा नाई किहे रहेन । हम बाँदर कय दूनौ हाथ पकरिकय दकेल दिहा अउर जोर से चिल्लायेन कासीदेई दीदी बाँदर तब तक अख्तर ई समझ गवा रहय ऊ डंडा उठाय लिहिस रहय अउर कासीदेई भी डंडा लइकय आय चुकी रहय । जब सबके हाथ मइहाँ डंष देखिस तब बाँदर हमका छोडिकय बिरवप चढि गवा रहय ।
डर के मारे हमार पुरा हाल रहय सुद्ध से नहमरे न अख्तर के बोल निकरत रहय । हम सबका फिर से पानी पियाइन तब कुछ देर बाद हमार लोगन हाल सुधरा र जउन आम खत्तिर हम लोग दौरा गा रहय । वही सेर कय एक अउर आम हम दूनौ जने का काशीदेई दिहिस अउर हम लोग दूनौ जने फुलवारी कय छहर देवारियम बैठ के आम चूसा गा अउर सोंचि सोचि कय खूब हंसा गा । आज ई जब ऊ घटना का सोंचित हम मन रोमांचित अउर डर से मन काँप उठत हय ।
(लेखक अवधी साँस्कृतिक प्रतिष्ठान कय केन्द्रिय अध्यक्ष हय, (नेपालगन्ज–५, बाँके) (स्रोतः समाज जागरण साप्ताहिक)